Just a duty-bound Hatred | कर्तव्य भर नफ़रत

By and | 1 October 2016

बहुत चली मुहब्बत की बातें उनकी ओर से
नफ़रतें उगाते रहे जमीं पर जबकि
वे भीतर बाहर लगातार
नफरतें पालीं उनने एकतरफा
हमारी तो पहुँच ही नहीं रही उनतक
कि उनके प्रति हम नफरत रखें अथवा प्रेम
सब कुछ तय होता रहा उनकी तरफ से
हमारी ओर से कुछ भी नहीं तो!
वे ही जज रहे हमारे मुजरिम भी जबकि वे ही

हममें नफरत करने का माद्दा कहाँ
हम तो बस, कर्तव्य भर
उनकी नफ़रतों के जवाब पर होते हैं!

This entry was posted in 76: DALIT INDIGENOUS and tagged , . Bookmark the permalink.

Related work:

Comments are closed.